मैहर, नलखेड़ा, उज्जैन, धार और इंदौर के देवी मंदिरों में माता का आशीर्वाद पाने पहुंच रहे भक्त
आज से शारदीय नवरात्र पर्व की शुरुआत हो गई है। इंदौर सहित मालवा और मध्यप्रदेश में कई प्राचीन देवी मंदिर भक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। उज्जैन और मैहर में विराजित शक्ति पीठ और नलखेड़ा की मां बगलामुखी सहित, शहर में विराजित बिजासन माता के मंदिर में मां का आशीर्वाद पाने भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी है।


Ramakant Shukla
Created AT: 03 अक्टूबर 2024
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आज से शारदीय नवरात्र पर्व की शुरुआत हो गई है। इंदौर सहित मालवा और मध्यप्रदेश में कई प्राचीन देवी मंदिर भक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र है।उज्जैन और मैहर में विराजित शक्ति पीठ और नलखेड़ा की मां बगलामुखी सहित, शहर में विराजित बिजासन माता के मंदिर में मां का आशीर्वाद पाने भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी है।
जानिए इन प्रमुख देवी मंदिरों के बारे में...
बिजासन माता मंदिर
वैष्णोदेवी मंदिर कटरा की तरह इंदौर शहर के पश्चिम क्षेत्र स्थित बिजासन माता मंदिर में माता के नौ स्वरूप पिंडियों के रूप में विराजित हैं। एक हजार साल पुराने इतिहास वाले मंदिर का जीर्णोद्धार वर्ष 1760 में महाराजा शिवाजीराव होलकर ने कराया था।देवास
देवास स्थित पहाड़ी को मां चामुंडा टेकरी, माता टेकरी और देववासिनी पहाड़ी के नाम से भी जाना जाता है। यहां छोटी माता मां चामुंडा और बड़ी माता मां तुलजा भवानी विराजित हैं। मंदिर लगभग 1200 वर्ष पुराना है। नवरात्र में पांच लाख से अधिक भक्त आएंगे। यहां अन्य मंदिर भी हैं, जिनमें कालिका माता मंदिर, हनुमान मंदिर, भैरव बाबा मंदिर, खोखो माता मंदिर और अन्नपूर्णा माता मंदिर शामिल हैं। नवरात्र में देशभर से लाखों भक्त आशीर्वाद लेने आते हैं।हरसिद्धि मंदिर
इंदौर के मध्य क्षेत्र स्थित हरसिद्धि मंदिर में स्थापित मूर्ति एक हजार साल प्राचीन है। मंदिर का निर्माण 1766 में देवी अहिल्याबाई होलकर ने कराया था।मां बगलामुखी
आगर-मालवा जिले के नलखेड़ा में मां बगलामुखी मंदिर है। यहां दर्शन मात्र से मनोकामना पूर्ण होती है। नौ दिन तक लाखों भक्तों का तांता लगता है।शक्तिपीठ हरसिद्धि
उज्जैन स्थित शक्तिपीठ हरसिद्धि मंदिर को लेकर मान्यता है कि यहां माता सती के दाहिनी हाथ की कोहनी गिरी थी। यहां मां हरसिद्धि की मूर्ति पूर्वमुखी होकर श्रीयंत्र पर विराजित है। पीछे माता अन्नपूर्णा, नीचे महाकाली, महालक्ष्मी व सरस्वती विराजित हैं।मैहर
सतना के पास मैहर में त्रिकूट की पहाड़ी पर मां शारदा देवी की मूर्ति की स्थापना विक्रम संवत 559 में की गई थी। मूर्ति पर देवनागरी लिपि में शिलालेख भी अंकित है। स्थानीय लोगों के अनुसार, अल्हा और उदल, जिन्होंने पृथ्वीराज चौहान के साथ युद्ध किया था, वे भी शारदा माता के बड़े भक्त हुआ करते थे। इन दोनों ने ही जंगलों के बीच इस मंदिर की खोज की थी। इसके बाद आल्हा ने इस मंदिर में 12 सालों तक तपस्या कर देवी को प्रसन्न किया था। माता ने उन्हें अमरत्व का आशीर्वाद दिया था।उज्जैन
प्राचीन उज्जैन के गढ़ क्षेत्र में भैरव पर्वत पर महाराजा विक्रमादित्य की आराध्य देवी मां गढ़कालिका का मंदिर है। इस मंदिर को दक्षिण भारतीय परंपरा में सिद्ध पीठ माना गया है। इस मंदिर में मां कालिका मुखमंडल के रूप में विराजित हैं। आसपास महालक्ष्मी व महासरस्वती की मूर्तियां भी हैं। इस मंदिर में आरती व कुमकुम पूजा का विशेष महत्व है। मां गढ़कालिका महाकवि कालिदास की आराध्य देवी भी मानी जाती हैं।अन्नपूर्णा मंदिर
हाथी गेट के लिए ख्यात अन्नपूर्णा रोड स्थित मंदिर का निर्माण 1959 में हुआ था। इसके बाद बने नवीन मंदिर में मां अन्नपूर्णा, मां सरस्वती और मां कालिका की पुन: प्रतिष्ठा 2023 में की गई थी। 81 फीट ऊंचे मंदिर में 51 स्तंभ हैं। अंदर-बाहर 1250 नवीन मूर्तियां हैं।धार
ऊंचे पहाड़ की चोटी पर देवीसागर तालाब के पास पंवार वंश की कुलदेवी मां गढ़कालिका विराजित हैं। यह वास्तुकला का अनूठा उदाहरण है।ये भी पढ़ें
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